नयी दिल्ली, 10 अगस्त (भाषा) महिंद्रा ग्रुप के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) अनीश शाह ने बताया कि जब वह 11 साल पहले कंपनी में आए थे, तब उन्होंने अपने बॉस आनंद महिंद्रा के एक प्रस्ताव को मना कर दिया था। उस समय समूह में उनको एक ही माह हुआ था।
शाह ने बताया कि उस वक्त उनकी बात मानी गई और निदेशक मंडल ने वह प्रस्ताव खारिज कर दिया।
आज, मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) बनने के बाद वह मानते हैं कि कनिष्ठ सहयोगी का ‘ना’ कहना विरोध नहीं बल्कि कंपनी के लिए एक अच्छा मौका होता है।
अनीश शाह अप्रैल, 2021 से महिंद्रा समूह के सीईओ हैं और उन्हें ‘जनता का सीईओ’ कहा जाता है।
शाह ने ‘पीटीआई वीडियो’ के साथ बातचीत में कहा कि समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने एक ऐसा खुला और सशक्त वातावरण बनाया है, जहां हर स्तर के कर्मचारियों की राय को सुना जाता है।
शाह ने बताया, ‘अधिकांश लोगों की यह धारणा होती है कि सीईओ सबकुछ ‘ताकत’ के ज़रिये करवा सकता है, लेकिन एक अच्छा नेता वह होता हैं जो काम इसीलिए करवाता है क्योंकि दूसरे लोग उसे करना चाहते हैं। अगर निर्णय केवल कुछ लोगों तक सीमित रहेंगे, तो सही फैसले नहीं मिल पाएंगे।’
शाह ने 11 साल पहले की उस घटना को याद करते हुए बताया कि जब वह रणनीति प्रमुख के रूप में समूह में शामिल हुए थे, तो उन्हें आनंद महिंद्रा ने एक प्रस्ताव पर अपनी राय देने को कहा था। शाह ने प्रस्ताव को देखने के बाद सीधे-सीधे ‘ना’ कह दिया और इसके कारण भी बताए।
तब आनंद महिंद्रा ने उनसे कहा, ‘ठीक है, मैं तुम्हें कल कंपनी के निदेशक मंडल की बैठक में बुलाऊंगा और वही सवाल पूछूगा. मैं चाहता हूं कि तुम निदेशक मंडल को भी वही जवाब दो जो तुमने मुझे दिया है।’
अगले दिन निदेशक मंडल की बैठक में आनंद महिंद्रा ने निदेशक मंडल से कहा, ‘अनीश का एक अलग नज़रिया है, जो मैं चाहता हूं कि आप सब सुनें।’
शाह ने अपना नज़रिया रखा और बताया कि वह ऐसा क्यों नहीं करेंगे। चर्चा के बाद निदेशक मंडल ने वह प्रस्ताव रोक दिया।
इस घटना का ज़िक्र करते हुए, शाह ने कहा, ‘‘इससे आपको आनंद के विविध विचारों को सामने लाने के खुलेपन का अंदाज़ा होता है। जैसा कि वह हमेशा कहते हैं, हमें कंपनी के लिए सही जवाब ढूंढ़ना होगा। और जवाब तक पहुंचने से पहले हमें सभी विविधताओं पर गौर करना होगा।’
जब शाह से पूछा गया कि वह अपने से तीन स्तर नीचे के किसी कर्मचारी की ‘ना’ को कैसे लेते हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘मेरे लिए, ‘ना’ एक तोहफ़ा है।’
उन्होंने समझाया, ‘‘नेतृत्वकर्तमा के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वह ऐसी असहमति को महत्व दे, क्योंकि किसी ‘जूनियर’ के लिए सीधे-सीधे यह कहना आसान नहीं होता।’
भाषा योगेश अजय
अजय