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Tuesday, August 12, 2025

राजस्थान में अरुण चतुर्वेदी को सियासी नियुक्ति के साथ मंत्री का दर्जा, बीजेपी नेताओं में नाराज़गी

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लोकसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता से ठीक पहले भजनलाल सरकार ने 7 बड़ी सियासी नियुक्तियां की थीं। लेकिन इन्हें आज तक मंत्री का दर्जा नहीं मिला। इस मामले में बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी बाजी मार गए। जबकि दिग्गज नेता और पूर्व सांसद सीआर चौधरी, जसवंत सिंह बिश्नोई को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलने का इंतजार लम्बा हो चला है। इस लिस्ट में 5 और भी नाम है, जिन्हें भी राज्य मंत्री का दर्जा मिलने की उम्मीद तो थी, लेकिन अभी तक नहीं मिला है।

अब पार्टी के एक धड़े के भीतर असंतोष इस बात को लेकर है, “जहां अरुण चतुर्वेदी को नियुक्ति के तुरंत बाद ही कैबिनेट की सुविधाएं मिलनी शुरू हो गई है, वहीं जाट, बिश्नोई, गुर्जर, राजपूत और एससी समेत 7 समाज के प्रतिनिधियों को पद मिलने के बावजूद स्टाफ की कमी है।

लोकसभा चुनाव में समाज का वोट बैंक भुनाने के इरादे से नियुक्तियां देने के बाद तो एक तरह से इन्हें भुला ही दिया गया। कुल मिलाकर, सियासी नियुक्ति की बात छिड़ने के साथ ही बीजेपी के भीतर के जातिगत समीकरण गड़बड़ाने लगे हैं। फिलहाल तो बीजेपी की हालत ऐसी हो चली है-*आसमान से गिरे, खजूर पर अटके*।

बीजेपी के खिलाफ गुर्जरों का गुस्सा

लोकसभा चुनाव के दौरान राजपूत समाज का विरोध झेलने वाली बीजेपी के खिलाफ गुर्जरों का भी गुस्सा फूटा। यह तूफान थमा भी नहीं था कि जाट समाज ने भूचाल ला दिया, इस भूकंप का केंद्र तो दिल्ली था, लेकिन झटके अब राजस्थान में भी महसूस किए जाने लगे हैं। प्रदेश प्रवक्ता कृष्ण कुमार जानू ने जगदीप धनखड़ के इस्तीफे और सत्यपाल मलिक की अंत्येष्टि की प्रक्रिया सम्मानपूर्वक नहीं किए जाने का सवाल उठाया और इसके बाद बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल की बजाय जब केके जानू को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया तो जाट महासभा भी मैदान में आ गई।

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बीजेपी का यही बिगड़ता तालमेल दूसरे समाज के साथ भी है। विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की ओर से 9 अक्टूबर 2023 को प्रत्याशियों की पहली सूची जारी हुई तो राजेंद्र नायक ने बगावत कर दी थी। पूर्व IAS अफसर और SC समाज के प्रमुख चेहरों में से एक नायक ने निर्दलीय चुनाव भी लड़ा। जब उन्हें राजस्थान राज्य अनुसूचित जाति वित्त और विकास आयोग के अध्यक्ष बनाया गया तो समाज के एक हिस्से में नाराजगी इस बात की है कि अभी भी उचित सम्मान नहीं मिला।

नेताओं की बेचैनी, समर्थकों का गुस्सा

वहीं, राजपूत वोट बैंक साधने के लिए माटी कला बोर्ड का गठन किया गया है। वसुंधरा राजे के करीबी पूर्व विधायक प्रेम सिंह बाजौर सैनिक कल्याण बोर्ड़ के अध्यक्ष हैं। प्रहलाद राय टांक को भी सियासी नियुक्ति दी गई है। लेकिन हालात यह है कि सरकार ने दफ्तर भी दिया है, लेकिन स्टाफ पर्याप्त नहीं है। देवनारायण बोर्ड के अध्यक्ष ओमप्रकाश भडाणा और विश्वकर्मा कौशल विकास बोर्ड के अध्यक्ष रामगोपाल सुथार को भी एक साल से उन्हें भी मंत्री पद का दर्जा मिलने का इंतजार है। जाहिर तौर पर अंदरखाने नेताओं की बेचैनी बढ़ रही है तो उनके समर्थकों का गुस्सा।

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