मुंबई, 11 अगस्त (भाषा) महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई की एक अदालत ने न्यास के जाली दस्तावेज तैयार करने में मदद करने के आरोपी 60 वर्षीय वकील को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि वह तीस साल से वकालत कर रहे हैं, इसलिए उनसे अधिक ‘सावधानी और ईमानदारी’ की अपेक्षा की जाती है।
अधिवक्ता रामजी गुप्ता की अग्रिम जमानत याचिका पिछले सप्ताह अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एन.जी. शुक्ला ने खारिज कर दी थी।
अदालत द्वारा दिये गए फैसले की प्रति सोमवार को प्राप्त हुई। इसके मुताबिक अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में पेश किये गए दस्तावेजों के अनुसार, न्यास के अध्यक्ष के फर्जी हस्ताक्षर किये गए जिनकी हड्डी टूटी हुई थी और उन्हें आठ जुलाई, 2020 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अदालत ने कहा कि इस प्रकार, यह ‘बहुत ही विचित्र’ था कि अध्यक्ष 11 जुलाई, 2020 को नोटरी रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के लिए गुप्ता के कार्यालय में उपस्थित हो पाते।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदक पिछले 30 वर्षों से नोटरी के रूप में कार्य कर रहा है। इसलिए, नोटरी रजिस्टर में दस्तावेजों को नोटरीकृत करने में आवेदक से अधिक सावधानी और ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है।’’
गुप्ता के खिलाफ मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक विश्वासघात का मामला दर्ज किया है।
अभियोजन पक्ष का मामला एक ‘समझौते’ को लेकर है, जिसे कथित तौर पर गुप्ता ने 11 जुलाई, 2020 को नोटरीकृत किया था। इस समझौते पर न्यास के अध्यक्ष के कथित हस्ताक्षर थे। हालांकि, अभियोजन पक्ष के अनुसार, अध्यक्ष आठ जुलाई, 2020 से 16 अगस्त, 2020 को अपनी मृत्यु तक अस्पताल में भर्ती थे।
अदालत ने यह कहते हुए गुप्ता की अग्रिम जमानत खारिज कर दी कि उसे हिरासत में पूछताछ आवश्यक है ताकि यह पता लगाया जा सके कि समझौते के लिए प्रविष्टि कब की गई थी और अध्यक्ष के रूप में किसने हस्ताक्षर किए थे।
भाषा धीरज प्रशांत
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