नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि उसकी रुचि अधिकारियों को फटकार लगाने में नहीं है, बल्कि वह अरावली की पहाड़ियों की रक्षा करना चाहता है।
न्यायालय ने इसी के साथ पहाड़ियों की एक समान परिभाषा को लेकर रिपोर्ट जमा करने के लिए समिति को दो महीने का समय और दे दिया।
उच्चतम न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला में अवैध खनन से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए पिछले वर्ष मई में विभिन्न राज्यों द्वारा अरावली पहाड़ियों की अपनाई गई अलग-अलग परिभाषाओं को रेखांकित करते हुए इसे एक प्रमुख मुद्दा बताया था।
इसके बाद न्यायालय ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से गुजरने वाली अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की एक समान परिभाषा देने के लिए एक समिति के गठन का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने 27 मई को समिति को निर्देश दिया कि वह प्रक्रिया में तेजी लाए, अंतिम रूप दे और दो महीने के भीतर अदालत को रिपोर्ट सौंपे।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ के समक्ष मंगलवार को यह मामला सुनवाई के लिए आया।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से कहा कि संबंधित अधिकारियों के साथ कई बैठकें की गईं और प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण किया जा रहा है। उन्होंने चारों राज्यों में फैली अरावली पहाड़ियों का विश्लेषण करने के लिए और दो महीने देने का अनुरोध किया।
पीठ ने इस पर याद दिलाया कि 27 मई को उसे सूचित किया गया था कि मुख्य समिति और तकनीकी सहायता समिति की कई बैठकें हो चुकी हैं तथा रिपोर्ट अंतिम चरण में है।
शीर्ष अदालत ने बताया कि मई में उसके द्वारा दी गई दो महीने की अवधि 27 जुलाई को समाप्त हो गई।
पीठ ने कहा कि अरावली पहाड़ियों की अलग-अलग परिभाषाओं के कारण, खनन गतिविधियों की अनुमति देते समय राज्यों द्वारा अलग-अलग मानदंडों का पालन किया जा रहा है।
उसने कहा कि अरावली पहाड़ियों की परिभाषा के संबंध में नीतिगत निर्णय लिया जाना आवश्यक है।
अंतिम अवसर के रूप में अधिक समय देने की इच्छा व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा कि समिति के सदस्य न्यायालय की अवमानना के लिए उत्तरदायी हैं, क्योंकि 27 मई के आदेश में उन्हें दो महीने के भीतर अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने कहा, ‘‘हम इस मामले को गंभीरता से ले सकते थे। हालांकि, हमें अधिकारियों को फटकार लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। हमारी रुचि केवल अरावली पहाड़ियों की रक्षा में है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अरावली पहाड़ियों को और नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती। अगर अनियंत्रित खनन गतिविधियों की अनुमति दी गई, तो इससे क्षेत्र की पारिस्थितिकी को बड़ा खतरा होगा।
पीठ ने समिति को अपनी रिपोर्ट और सिफारिशें दाखिल करने के लिए 15 अक्टूबर तक का समय दिया।
भाषा धीरज नेत्रपाल
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