नयी दिल्ली, 13 अगस्त (भाषा) केंद्र ने पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर वन प्रभाग में गौरांगडीह एबीसी कोयला खदान के लिए 109.459 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि के इस्तेमाल को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी है और आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, इस खदान परियोजना के तहत 629 परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा।
यह निर्णय 30 जुलाई को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक में लिया गया।
पश्चिम बंगाल खनिज विकास एवं व्यापार निगम लिमिटेड (डब्ल्यूबीएमडीटीसीएल) द्वारा संचालित गौरांगडीह एबीसी कोयला खदान 356.575 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है जिसमें से 109.459 हेक्टेयर वन भूमि है।
इस क्षेत्र की लगभग 40 प्रतिशत भूमि पत्तियों और पौधों की शाखाओं से ढकी है। वन भूमि में लगभग 5,200 पेड़ हैं। इनमें से अधिकतर पेड़ आकाशमणि के हैं। इसके अलावा इस भूमि में भारतीय सियार, बंगाल लोमड़ी, साही, ‘रॉक पाइथन’ (अजगर), नाग और रसेल वाइपर (एक प्रकार का सांप) जैसे वन्यजीव भी हैं। यह क्षेत्र किसी भी राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र, बाघ अभयारण्य या हाथी गलियारे के अंतर्गत नहीं आता।
समिति ने निर्धारित किया कि 10 हेक्टेयर से कम के सभी प्रतिपूरक वनरोपण (सीए) क्षेत्रों की जंजीर से बाड़ बनाई जाएगी और 20 वर्षों तक उनका रखरखाव किया जाएगा ।
उसने कहा कि क्षेत्र के लिए स्वीकृत वन्यजीव संरक्षण योजना को उपयोगकर्ता एजेंसी की लागत पर क्रियान्वित किया जाना चाहिए तथा कटाव के जोखिम से निपटने के लिए मृदा एवं नमी संरक्षण योजना तैयार की जानी चाहिए।
इस परियोजना के तहत पट्टा क्षेत्र के भीतर गैर-वन भूमि से 629 परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा और इसके लिए डब्ल्यूबीएमडीटीसीएल द्वारा राज्य के दिशानिर्देशों के अनुसार पुनर्वास योजना तैयार की जाएगी।
यह प्रस्ताव पहली बार 2019 में पेश किया गया था।
भाषा सिम्मी मनीषा
मनीषा