नयी दिल्ली, 13 अगस्त (भाषा)भारतीय शिक्षण संस्थानों को महज नौ महीनों में दो लाख से अधिक बार साइबर हमलों और जानकारी में सेंध लगाने की करीब चार लाख कोशिशों का सामना करना पड़ा है। यह खुलासा एक प्रायोगिक अध्ययन में हुआ है।
‘भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के लिए साइबर खतरों और डिजिटल जोखिमों की तलाश’ शीर्षक से यह अध्ययन साइबरपीस फाउंडेशन के महत्वकांक्षी ई-कवच पहल के तहत डेलनेट, रीसिक्योरिटी और ऑटोबोट इन्फोसेक के सहयोग से किया गया है।
इस अध्ययन रिपोर्ट को बुधवार ‘साइबर फर्स्ट रिस्पॉन्डर’ पहल की शुरुआत के साथ जारी किया गया। इसका उद्देश्य छात्रों, संकाय, पुस्तकालयाध्यक्षों और कर्मचारियों को साइबर खतरों, डीपफेक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दुरुपयोग का मुकाबला करने के लिए कुशल बनाना है।
जुलाई 2023 और अप्रैल 2024 के बीच किए गए नौ महीने के अध्ययन में पाया गया कि 8,000 से ज्यादा विशिष्ट यूज़रनेम और 54,000 विशिष्ट पासवर्ड ‘ब्रूट-फोर्स’ हमलों (इसमें साइबर हमलावर कई संभावित कुंजी या पासवर्ड का इस्तेमाल कर डाटा तक पहुंचने की कोशिश करता है)में इस्तेमाल किए जा रहे थे। आम तौर पर लक्षित यूजरनेम में ‘रूट’ और ‘एडमिन’ शामिल थे, जबकि ‘123456’ और ‘पासवर्ड’ जैसे कमज़ोर पासवर्ड का इस्तेमाल अक्सर किया जा रहा था।
अध्ययन रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि, ‘‘भारतीय शैक्षणिक संस्थान पर मजबूत साइबर सुरक्षा वाले समकक्षों की तुलना में जानकारी में सेंधमारी की आशंका पांच गुना अधिक हैं।’’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि उल्लंघनों से संकाय का प्रतिरूपण, जासूसी करने के लिए हमले, डीपफेक सामग्री, संवेदनशील शोध डेटा की चोरी और परीक्षा पत्रों का लीक होना हो सकता है।
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय-दिल्ली के कुलपति प्रोफेसर जी.एस. बाजपेयी ने कहा कि डिजिटल युग में लचीलेपन का अर्थ है व्यवधान के जवाब में प्रणालियों में परिवर्तन करना।
डेलनेट की निदेशक डॉ. संगीता कौल ने साइबर फर्स्ट रेस्पोंडर पहल को ‘परिवर्तन पर प्रतिक्रिया देने के बजाय उसे आकार देने की प्रतिबद्धता’’ बताया, जबकि साइबरपीस फाउंडेशन के संस्थापक और वैश्विक अध्यक्ष विनीत कुमार ने रिपोर्ट को शैक्षणिक संस्थानों के लिए ‘चेतावनी’ करार दिया।
कुमार ने कहा, ‘‘साइबर सुरक्षा के बिना डिजिटलीकरण, बिना दरवाजों या तालों के घर बनाने जैसा है। नवाचार लचीलेपन के बिना फूल-फल नहीं सकता।’’
भाषा धीरज माधव
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