देहरादून, 13 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एक समिति के दो विशेषज्ञों ने बुधवार को चेतावनी दी कि यदि उत्तराखंड में बहुचर्चित चारधाम ‘आल वेदर रोड’ (सभी मौसम में चालू रहने वाली सड़क) चौड़ीकरण परियोजना को इसके वर्तमान स्वरूप में ही जारी रखा गया तो इसके भी धराली आपदा जैसे परिणाम होंगे।
विशेषज्ञों ने धराली आपदा को राज्य प्राधिकारियों द्वारा नाजुक हिमालय में अनियमित निर्माण और पर्यटन गतिविधियों के खिलाफ बार-बार दी गई वैज्ञानिक चेतावनियों की अनदेखी का परिणाम बताया।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को मंगलवार को लिखे पत्र में वरिष्ठ भूविज्ञानी नवीन जुयाल और पर्यावरणविद् हेमंत ध्यानी ने कहा कि निचले और उच्च हिमालय, दोनों में घाटी की ओर के ढलानों पर चारधाम ‘आल वेदर’ सड़क को एकसमान रूप से 10 मीटर चौड़ा किए जाने से चौड़ी की गयी सड़कों के किनारे कई नए कमजोर क्षेत्र निर्मित हो गए हैं।
उन्होंने लगभग दो वर्ष पहले सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को सौंपी अपनी वैकल्पिक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को अपनाए जाने की वकालत की जिसमें लचीले और आपदा-रोधी सड़क चौड़ीकरण डिजाइन का विवरण दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस डिजायन का पालन भागीरथी पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (बीईएसजेड) में किया जा सकता है, जिससे वृक्षों की कटाई और ढलानों के साथ न्यूनतम छेड़छाड़ होगी। उन्होंने कहा कि इससे हिमालय में सड़क चौड़ीकरण के कारण होने वाला नुकसान निश्चित रूप से कम होगा।
बीईएसजेड गोमुख से लेकर उत्तरकाशी तक 4179.59 वर्ग किलोमीटर का अधिसूचित क्षेत्र है और धराली इसी का एक हिस्सा है। महत्वाकांक्षी चारधाम ‘ऑल वेदर रोड’ परियोजना का कुछ हिस्सा भी इससे होकर गुजरता है।
जुयाल और ध्यानी दोनों ही चारधाम ‘ऑल वेदर’ सड़क परियोजना पर उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति का हिस्सा थे। जुयाल ने समिति छोड़ दी है लेकिन ध्यानी अभी भी इसका हिस्सा हैं।
भूस्खलन और बादल फटने जैसी चरम मौसमी घटनाओं के प्रति उच्च हिमालय की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए विशेषज्ञों ने बीईएसजेड में चारधाम ‘ऑल वेदर’ सड़क चौड़ीकरण परियोजना में एक टिकाऊ और लचीला दृष्टिकोण अपनाए जाने की सिफारिश की।
पत्र में दोनों विशेषज्ञों ने लिखा, ‘‘हम आपदा-प्रतिरोधी राजमार्ग सुनिश्चित करने के लिए एक वैकल्पिक टिकाऊ दृष्टिकोण अपनाए जाने की सिफारिश कर रहे हैं।’’
इसमें कहा गया है कि ये सिफारिशें पांच अगस्त को खीर गंगा नदी में आई भीषण बाढ़ से तबाह हो गयी सड़कों के कुछ हिस्सों के लिए भी थीं।
पत्र में विशेषज्ञों ने कहा, ‘‘हमने प्रस्तावित नेताला बाईपास (उत्तरकाशी के निकट) को रद्द करने की सिफारिश की है क्योंकि यह बरसाती धाराओं से हुए भूस्खलन के जमाव पर उगे प्राचीन वनों के बीच से प्रस्तावित है। यदि इन जमावों के बीच से सड़क खोदी जाती है, तो ढलान में अस्थिरता और धंसाव की समस्या उत्पन्न होने की आशंका है।’’
विशेषज्ञों ने कहा कि झाला (सुक्खी टॉप के नीचे) और जांगला (भैरोंघाटी के पास) के बीच प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत 10 किलोमीटर लंबे सड़क मार्ग के निर्माण के लिए 6000 पेड़ों को काटे जाने के लिए चिह्नित किया गया है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा होता है, तो यह निश्चित रूप से हिमस्खलन के मलबे को अस्थिर कर देगा और 10 किलोमीटर लंबे इस सड़क मार्ग को बहुत अस्थिर कर सकता है।
मंत्रालय को सौंपी गई वैकल्पिक योजना में उन्होंने ऐसे स्थानों की पहचान की है जहां ‘एलिवेटेड कॉरिडोर’ तकनीक का उपयोग करके नदी की ओर सड़क का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि धाराओं वाले हिस्सों में ज्यादा ऊंचाई वाले पुलों प्रस्तावित किये गए हैं ताकि हिमस्खलन के दौरान आम तौर पर आने वाले पत्थरों से बचा जा सके।
पत्र में कहा गया है कि ये पुल हर्षिल के सामने और धराली में प्रस्तावित थे। धराली में अचानक आई बाढ़ के बारे में, विशेषज्ञों ने कहा कि हाल के वर्षों में ऊपरी गंगा जलग्रहण क्षेत्र में पर्यटकों की आमद में भारी वृद्धि हुई है और जरूरतों को पूरा करने के लिए सभी नियमों को ताक पर रखकर व्यापक रूप से नए निर्माण कार्य हुए हैं।
ध्यानी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘धराली भागीरथी पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र में आता है। वहां आई यह तबाही अधिकारियों द्वारा ऐसे नाज़ुक हिमालयी क्षेत्रों की संवेदनशीलता के बारे में बार-बार दी गई वैज्ञानिक चेतावनियों की अनदेखी और बीईएसजेड अधिसूचना के तहत बनाए गए कानूनी प्रावधानों के उल्लंघन का नतीजा है। इनमें नदियों और नालों के पास ढलानों पर निर्माण और विकास गतिविधियों पर प्रतिबंध है।’’
पांच अगस्त को खीर गंगा नदी में आई विनाशकारी बाढ़ ने गंगोत्री के रास्ते में पड़ने वाले धराली गांव का करीब आधा हिस्सा तबाह कर दिया। इस आपदा में बीसियों होटल और मकान जमींदोज हो गए जबकि 68 लोग लापता हो गए।
भाषा दीप्ति अमित
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