देश के स्कूलों में सीखने के नतीजे चिंताजनक हैं। कक्षा-6 के आधे से ज़्यादा बच्चे बुनियादी गणित-भाषा नहीं संभाल पा रहे, कक्षा-5 के केवल आधे बच्चे कक्षा-2 के स्तर का पाठ पढ़ पाते हैं। इसी बीच सरकार अध्यापक प्रशिक्षण प्रणाली को ITEP/एकीकृत अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम (आईटीईपी) की ओर मोड़ते हुए B.El.Ed. को हटाने का मसौदा लेकर आया, जबकि संसद की स्थायी समिति कुछ और ही कह रही है।
चौंकाने वाले आंकड़े खोल रहे पोल
शिक्षा मंत्रालय के “PARAKH राष्ट्रीय सर्वेक्षण” (पूर्व NAS) के मुताबिक कक्षा 6 के 43% छात्र पाठ के मुख्य विचार नहीं समझ पाते, जबकि कक्षा 9 के 63% छात्र संख्याओं में साधारण पैटर्न पहचान ने या भिन्न और पूर्णांक जैसी बुनियादी संख्यात्मक अवधारणाएं नहीं समझ पाते। कक्षा 6 के 54% छात्र पूर्णांकों की तुलना या बड़ी संख्याएं पढ़ने में भी असमर्थ हैं। सर्वे दिसंबर 2024 में 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 21.15 लाख छात्रों पर हुआ।
ASER-2024 की तस्वीर भी अलग नहीं
सरकारी स्कूलों में केवल 23.4% कक्षा 3 के छात्र ही कक्षा 2 स्तर का पाठ पढ़ने में सक्षम हैं। ASER 2024 के अनुसार, कक्षा 3 के 76.6% छात्र 19 भाषाओं में उपलब्ध पाठ्य सामग्री को पढ़ने में असमर्थ रहे। विश्व बैंक के लर्निंग पॉवर्टी इंडेक्स (आधारभूत पाठ पढ़ने में असमर्थ 10 वर्ष के बच्चों का प्रतिशत) के अनुसार, भारत की लर्निंग पॉवर्टी दर वर्ष 2019 में 55% से बढ़कर कोविड-19 के बाद 70% हो गई।
समस्या की जड़
पिछले सप्ताह संसद में रखी गई रिपोर्ट में संसदीय स्थायी समिति (अध्यक्ष: दिग्विजय सिंह) ने बताया कि स्कूलों में करीब 10 लाख शिक्षकों की रिक्तियां हैं। विशेषकर प्राथमिक स्तर पर। प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर करीब 7.5 लाख पद खाली हैं। समिति ने कहा कि राज्य सरकारों के SSA द्वारा वित्तपोषित स्कूलों में रिक्त पदों को समयबद्ध तरीके से भरने की उसकी बार-बार की सिफारिशों के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ है।
इसके उलट, स्थायी भर्ती नीति के अभाव और शिक्षकों के सेवानिवृत्त होने के कारण यह स्थिति दिन-ब-दिन और खराब होती जा रही है। रिपोर्ट में ठेका/कॉन्ट्रैक्ट नियुक्तियों पर रोक (क्योंकि यह सरकारी नौकरियों में SC/ST/OBC के संवैधानिक आरक्षण को कमज़ोर करती है), NCTE में 2019 से रुकी नियमित नियुक्तियां फिर शुरू करना, और DIETs का विस्तार व सशक्तिकरण, NCTE 2025 ड्राफ्ट विनियमों की व्यापक समीक्षा शामिल हैं, ताकि वर्तमान इंटीग्रेटेड टीचर एजुकेशन प्रोग्राम (ITEP) के माध्यम से अध्यापक शिक्षा के ‘बहुत अधिक विषय-आधारित प्रशिक्षण और कोर्स को कई छोटे-छोटे हिस्सों में बांटने (hyperspecialisation and segmentation)’ वाली व्यवस्था से हटकर सुधार किए जा सकें। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी इन मुख्य सिफारिशों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट (X) पर साझा किया।
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ITEP बनाम B.El.Ed.: क्या हम सफल मॉडल छोड़ रहे हैं?
NCTE के ड्राफ्ट नियम (2025) के अनुसार 1994-95 से चला आ रहा चार वर्षीय B.El.Ed. कार्यक्रम 2026-27 से बंद कर ITEP (BA/BSc/BCom-B.Ed. एकीकृत) पर पूर्ण निर्भरता का प्रस्ताव है। समिति ने इसे “शॉर्ट-साइटेड” बताते हुए कहा – समस्या है तो पाठ्यक्रम उन्नयन कीजिए, पर सिद्ध-प्रमाणित कार्यक्रम को बंद न कीजिए; राज्यों को B.El.Ed. जारी रखने दें और उसके संकाय/इन्फ्रास्ट्रक्चर को संरक्षित करें।
मंत्रालय ने समिति को बताया कि B.El.Ed. में 50 छात्रों के लिए 16 फैकल्टी की ज़रूरत पड़ती है जबकि ITEP में इसे 9 तक लाया गया है। यही “उच्च फैकल्टी मांग” तर्क हटाने के पक्ष में रखा गया। समिति का मत: फैकल्टी घटाकर लागत बचाने की दृष्टि, सीखने की गुणवत्ता पर उल्टा असर डाल सकती है, खासकर जब कक्षा-कक्ष में सीखने का संकट स्वयं सरकार के सर्वे से उजागर है।
एक ओर बच्चे बुनियादी पढ़ाई-लिखाई में पिछड़ रहे हैं, दूसरी ओर शिक्षक प्रशिक्षण प्रणाली को एक ही टेम्पलेट (ITEP) में समेटने की जल्दी दिखती है। समिति का तर्क है-रिक्तियां भरें, स्थायी शिक्षक लाएँ, DIETs मज़बूत करें, NCTE को संसाधन दें, (B.El.Ed.) जैसे सफल कार्यक्रमों को उन्नत करके साथ-साथ चलाएँ। यही रास्ता सीखने की खाई पाटने और स्कूल-स्तर पर गुणवत्ता सुधारने का व्यावहारिक समाधान है।
(इनपुट – Arham Abdaal)