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Tuesday, August 19, 2025

न्यायालय ने आयोग से बिहार में 2003 में मतदाता सूची समीक्षा में लिए गए दस्तावेजों के बारे में पूछा

Newsन्यायालय ने आयोग से बिहार में 2003 में मतदाता सूची समीक्षा में लिए गए दस्तावेजों के बारे में पूछा

नयी दिल्ली, 14 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) से उन दस्तावेजों की जानकारी देने को कहा, जिन पर बिहार में 2003 के गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान विचार किया गया था।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करने के 24 जून के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू करते हुए कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि निर्वाचन आयोग बताए कि 2003 की प्रक्रिया में कौन से दस्तावेज लिए गए थे।’’

यह टिप्पणी तब आई जब एक पक्ष की ओर से पेश हुए वकील निजाम पाशा ने अदालत के हवाले से कथित तौर पर कहा, ‘‘अगर 1 जनवरी, 2003 (पहले की एसआईआर की तारीख) की तारीख चली जाती है, तो सब कुछ चला जाता है।’’

पाशा ने कहा, ‘‘यह बताने के लिए कुछ भी नहीं था कि यह तारीख क्यों है… यह धारणा बनाने की कोशिश की जा रही है कि यह वही तारीख है जब मतदाता सूची के पुनरीक्षण के लिए गहन प्रक्रिया हुई थी। यह कहा गया है कि उस समय जारी किया गया ईपीआईसी (मतदाता) कार्ड समय-समय पर की गई संक्षिप्त कवायदों के दौरान जारी किए गए ईपीआईसी (मतदाता) कार्ड से ज्यादा विश्वसनीय है, जो गलत है।’’

पाशा ने पूछा कि अगर गहन और संक्षिप्त संशोधन के तहत नामांकन की प्रक्रिया एक ही है, तो संक्षिप्त प्रक्रिया के तहत जारी किए गए ईपीआईसी कार्ड कैसे रद्द किए जा सकते हैं।

वकील ने कहा कि इसलिए 2003 की तारीख अमान्य है।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे गणना फॉर्म की कोई रसीद या प्राप्ति की पुष्टि करने वाला कोई दस्तावेज नहीं दिया जा रहा है और इसलिए बूथ स्तर के अधिकारियों का दबदबा है और इन निचले स्तर के अधिकारियों के पास फॉर्म लेने या न लेने का बहुत ज़्यादा विवेकाधिकार है।’’

एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शोएब आलम ने निर्वाचन आयोग की अधिसूचना में अपर्याप्त कारणों की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया न तो ‘संक्षिप्त’ है और न ही ‘गहन’, बल्कि केवल बनाने के लिए अधिसूचना बनाई गई है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह मतदाता पंजीकरण की प्रक्रिया है और इसे अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया नहीं माना जा सकता। यह स्वागत योग्य प्रक्रिया है, इसे अप्रिय प्रक्रिया में नहीं बदलना चाहिए।’’

शीर्ष अदालत ने 13 अगस्त को कहा था कि मतदाता सूचियां ‘स्थिर’ नहीं रह सकतीं और उनमें संशोधन होना तय है। शीर्ष अदालत ने कहा कि बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए स्वीकार्य पहचान दस्तावेजों की सूची को सात से बढ़ाकर 11 करना वास्तव में ‘मतदाताओं के अनुकूल है, न कि उन्हें बहिष्कृत करने वाला’।

पीठ ने एक याचिकाकर्ता की इस दलील से भी असहमति जताई कि विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में मतदाता सूचियों के एसआईआर का कोई कानूनी आधार नहीं है और इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के नेताओं और गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण की कवायद को चुनौती दी है।

भाषा वैभव मनीषा

मनीषा

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