नयी दिल्ली, 14 अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि पीड़ित बच्चे की गवाही की गहन जांच की आवश्यकता है, क्योंकि उन्हें सिखाने-पढ़ाने की प्रवृत्ति होती है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने इसी के साथ उस व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी जिसे 2017 में 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार के लिए 20 साल कारावास सजा की सुनाई गई है।
अदालत ने कहा कि फोरेंसिक विश्लेषण रिपोर्ट में पीड़िता की गवाही की पुष्टि हुई है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह सामान्य कानून है कि पीड़ित बच्चे की गवाही की गहन जांच की आवश्यकता होती है, क्योंकि बच्चों को अक्सर सिखाए-पढ़ाए (गवाही के संदर्भ मे)जाने की आशंका होती है। गवाही का परिस्थितियों के आलोक में सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि क्या यह विश्वास पैदा करती है। अदालत को यह देखना होगा कि पीड़ित बच्चा पूरी तरह से विश्वसनीय है, पूरी तरह से अविश्वसनीय है या आंशिक रूप से विश्वसनीय है… इस अदालत को यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि पीड़ित बच्चे की गवाही की पुष्टि फोरेंसिक विश्लेषण रिपोर्ट में भी होती है।’’
न्यायाधीश ने कहा कि अभियुक्त की दलीलों में कोई तथ्य नहीं है और उसकी अपील खारिज कर दी।
नाबालिग ने आरोप लगाया कि दोषी पवन ने उसका मुंह बंद कर दिया, उसे अपने घर ले गया और उसके साथ बलात्कार किया। दोषी ने कथित तौर पर पीड़िता को धमकी दी कि अगर उसने अपनी आपबीती किसी को बताई तो वह उसे जान से मार देगा।
भाषा धीरज माधव
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