15 अगस्त 2025 का दिन भारतीय राजनीतिक इतिहास में केवल स्वतंत्रता दिवस के रूप में ही नहीं, बल्कि जल-राजनीति के मोड़ के रूप में भी दर्ज किया जाएगा। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 12वां स्वतंत्रता दिवस संबोधन इस मायने में असाधारण रहा कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संधियों के उस ‘अलिखित पवित्र भाव’ को चुनौती दी, जिसे दशकों से अछूत समझा गया था।
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा सिंधु का पानी और उसकी हर बूंद पर भारत और उसके किसानों का अधिकार है। दशकों तक हमने सहा, अब और नहीं सहेंगे। खून और पानी कभी साथ-साथ नहीं बह सकते। यह केवल एक भावनात्मक उद्घोष नहीं था, बल्कि 1960 की सिंधु जल संधि की मूल अवधारणा पर प्रश्नचिन्ह भी था।
एकतरफा व्यवस्था का अंत?
सिंधु जल संधि, 1960—विश्व बैंक की मध्यस्थता में तैयार यह समझौता, जिसे कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘सफल मॉडल’ बताया गया, भारत के अंदरूनी विमर्श में हमेशा मिश्रित प्रतिक्रियाएं पाता रहा है। इसके तहत सिंधु, झेलम और चिनाब तीनों पश्चिमी नदियों का प्रवाह पाकिस्तान को सौंपा गया, जबकि रावी, ब्यास और सतलुज का पानी भारत के हिस्से में आया। सिद्धांततः यह ‘न्यायसंगत बंटवारा’ कहा गया, किंतु वास्तविकता में, भारत अपने हिस्से के पानी का भी पूर्ण दोहन नहीं कर सका, जबकि पाकिस्तान को ऊपरी प्रवाह वाली नदियों का स्थायी लाभ मिला।
कृषि विशेषज्ञ लंबे समय से चेताते रहे हैं कि इस संधि के कारण पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य जल संकट और सिंचाई असंतुलन से जूझ रहे हैं। वहीं सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले पड़ोसी के साथ ‘जल-विभाजन’ जैसी रियायत नैतिक और रणनीतिक दोनों दृष्टि से संदिग्ध है।
आतंकी पृष्ठभूमि में ऐलान
प्रधानमंत्री का यह बयान केवल नीति-स्तर का विचार नहीं, बल्कि तात्कालिक राजनीतिक और सुरक्षा संदर्भ से जुड़ा हुआ है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हालिया आतंकी हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत ने देश को झकझोर दिया। ऐसे माहौल में मोदी का यह कहना ऐसे में संधि को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं बचता एक स्पष्ट संदेश है कि भारत अब पाकिस्तान के साथ ‘यथास्थिति’ बनाए रखने के लिए तैयार नहीं।
कृषि पर सीधा असर
यदि भारत वास्तव में अपने हिस्से का पानी रोकने की दिशा में कदम बढ़ाता है, तो इसका सबसे प्रत्यक्ष लाभ पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर के किसानों को मिलेगा। वर्षों से जिन खेतों की प्यास नहरों के सूखेपन से नहीं बुझ पाती, वहां सिंचाई के नए अवसर खुल सकते हैं। इससे खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि और किसानों की आय में सुधार संभावित है।
हालांकि, जल-इंजीनियरिंग के मोर्चे पर चुनौतियां भी कम नहीं बांध, नहरें और जल-भंडारण संरचनाएं विकसित करने में समय, निवेश और तकनीकी समन्वय की जरूरत होगी।
भविष्य की भू-राजनीति
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सिंधु जल संधि को अब तक ‘पानी पर युद्ध रोकने वाली संधि’ के रूप में पेश किया गया है। भारत का यह रुख न केवल पाकिस्तान, बल्कि चीन और अन्य जल-साझेदार देशों के लिए भी संकेत है कि नई दिल्ली अपनी संप्रभुता से जुड़ी व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगी। इससे दक्षिण एशिया की जल-राजनीति और कूटनीति में नए समीकरण बन सकते हैं।
नए भारत का संकेत
लाल किले से आया यह संदेश केवल पानी के प्रवाह पर नियंत्रण की घोषणा नहीं है; यह उस मानसिकता का उद्घोष है, जिसमें भारत स्वयं को ‘प्रतिक्रियाशील राष्ट्र’ से ‘निर्णायक राष्ट्र’ में रूपांतरित कर रहा है। प्रधानमंत्री का यह कहना कि देश की सुरक्षा और किसानों का हित, हमारे लिए सर्वोच्च हैं दरअसल एक नीति-घोषणा है, जिसका असर केवल खेतों तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति, सुरक्षा रणनीति और आंतरिक राजनीतिक विमर्श तक फैलेगा।
ये भी पढ़ें:- राजस्थान: महात्मा गांधी अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में 11वीं की खाली सीटें ‘पहले आओ, पहले पाओ’ से भरेंगी
Q. प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2025 के भाषण में सिंधु जल संधि को लेकर क्या मुख्य घोषणा की?
Ans. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सिंधु का पानी और उसकी हर बूंद पर भारत और उसके किसानों का अधिकार है। उन्होंने 1960 की सिंधु जल संधि की अवधारणा को चुनौती देते हुए कहा कि “खून और पानी कभी साथ-साथ नहीं बह सकते” और अब इस एकतरफा व्यवस्था को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं।
Q. सिंधु जल संधि के तहत किन नदियों का प्रवाह पाकिस्तान और भारत को मिला था?
Ans. संधि के तहत सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का प्रवाह पाकिस्तान को दिया गया, जबकि रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का पानी भारत को मिला।
Q. अगर भारत अपने हिस्से का पानी रोकना शुरू करता है, तो किसे सबसे ज्यादा लाभ होगा?
Ans. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर के किसानों को सबसे ज्यादा लाभ होगा, क्योंकि इससे सिंचाई के नए अवसर मिलेंगे, खाद्यान्न उत्पादन बढ़ेगा और किसानों की आय में सुधार होगा।
Q. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस घोषणा का क्या असर हो सकता है?
Ans. यह कदम न केवल पाकिस्तान, बल्कि चीन और अन्य जल-साझेदार देशों के लिए संकेत होगा कि भारत अपनी संप्रभुता से जुड़े मामलों में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा। इससे दक्षिण एशिया की जल-राजनीति और कूटनीति में नए समीकरण बन सकते हैं।