नयी दिल्ली, 17 अगस्त (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने एक पति और उसके परिवार के सदस्यों को क्रूरता और यौन उत्पीड़न के आरोपों से मुक्त करते हुए कहा कि ये ‘‘गंभीर’’ आरोप न्याय के बजाय बदला लेने के लिए लगाये गए थे।
न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रुति शर्मा एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसने दहेज की बार-बार मांग के अलावा शारीरिक, मानसिक और यौन क्रूरता का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था।
अदालत ने 14 अगस्त के आदेश में कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता ने तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है और अपने पति के परिवार के सभी सदस्यों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाकर अपने मामले को मजबूत करने का प्रयास किया है।’’
उसने कहा कि यह बात इस तथ्य से और पुष्ट होती है कि पति सहित परिवार के कुल सात सदस्यों पर आरोप लगाया गया है तथा दो पुरुष रिश्तेदार ऐसे हैं जिनके विरुद्ध यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैं।
अदालत ने कहा, ‘‘इन आरोपों की व्यापक प्रकृति, विशेष रूप से सभी पुरुष सदस्यों को गंभीर अपराधों जैसे कि आईपीसी की धारा 498 ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा विवाहित महिला के साथ क्रूरता) और 354 (महिला की गरिमा को भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत आरोप लगाना कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग की ओर इशारा करती है।’’
सभी आरोपियों को आरोपमुक्त करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता ने ‘‘न्याय पाने के लिए सद्भावनापूर्ण इरादे से नहीं, बल्कि द्वेष के साथ, न्यायसंगत राहत के बजाय प्रतिशोध के तहत अदालत का रुख किया था।’’
अदालत ने कहा कि पति के खिलाफ क्रूरता के आरोप ‘‘प्रथम दृष्टया संदिग्ध, निराधार और दुर्भावना से प्रेरित’’ हैं, जबकि ससुराल वालों के खिलाफ कोई ठोस आरोप नहीं हैं।
भाषा
अमित शफीक
शफीक