28.9 C
Jaipur
Tuesday, August 19, 2025

मेक इन इंडिया को ‘भारत की जरूरत वाली सभी चीजें बनाने’ में न बदला जाए: सुब्बाराव

Newsमेक इन इंडिया को ‘भारत की जरूरत वाली सभी चीजें बनाने’ में न बदला जाए: सुब्बाराव

(बिजय कुमार सिंह)

नयी दिल्ली, 18 अगस्त (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने सोमवार को आगाह करते हुए कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ को ‘भारत की जरूरतों’ के अनुसार सब कुछ बनाने’ में नहीं बदलना चाहिए क्योंकि इससे देश में निवेश और उत्पादकता प्रभावित होगी।

सुब्बाराव ने यह भी कहा कि अमेरिका के भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50 प्रतिशत शुल्क से सबसे महत्वपूर्ण विदेशी बाजार अमेरिका में भारतीय वस्तुओं की लागत बढ़ जाएगी।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर ‘मेक इन इंडिया’ को ‘भारत की जरूरतों के अनुसार सब कुछ बनाने’ में बदला जाता है, तो हम चीन से निवेश आकर्षित करने का मौका गंवा देंगे।’’

सुब्बाराव ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘शुल्क हमें याद दिलाते हैं कि खुलापन सतत विकास का मार्ग है न कि अलग-थलग होकर रहना। ‘मेक इन इंडिया’ की सफलता प्रतिस्पर्धा पर निर्भर करती है, संरक्षणवाद पर नहीं।’’

आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में आत्मनिर्भर भारत, एक आकांक्षा की बात दोहरायी थी। इसका अर्थ रक्षा और ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में रणनीतिक आत्मनिर्भरता होना चाहिए, न कि पूर्ण आत्मनिर्भरता।’’

उन्होंने कहा, ‘मेक इन इंडिया’ की परिकल्पना देश को एक निर्यात-आधारित विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए की गई थी। इसका मतलब था कि भारत में निर्माण, न केवल देश के लिए, बल्कि दुनिया के लिए है।

सुब्बाराव ने कहा, ‘‘दंडात्मक अमेरिकी शुल्क हमारे सबसे महत्वपूर्ण विदेशी बाजार में भारतीय वस्तुओं की लागत बढ़ाकर इस महत्वाकांक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं।’’

उन्होंने कहा कि भारत को अपनी चीन प्लस-1 रणनीति में चीन के विकल्प के रूप में देखने वाले निवेशक ऐसे भारत में निवेश करने से हिचकिचाएंगे, जिस पर एशिया में सबसे अधिक शुल्क लगे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में कहा था कि किसी भी राष्ट्र के लिए, आत्मसम्मान का सबसे बड़ा आधार अब भी ‘आत्मनिर्भरता’ है और ‘विकसित भारत’ का आधार भी ‘आत्मनिर्भर भारत’ है।’’

भारत के निर्यात और प्रतिस्पर्धी क्षमता पर 50 प्रतिशत शुल्क के प्रभाव के बारे में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में सुब्बाराव ने कहा कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। यह हमारे कुल निर्यात का लगभग 20 प्रतिशत और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का दो प्रतिशत से अधिक है।

उन्होंने कहा, ‘‘औषधि और इलेक्ट्रॉनिक्स को छूट देने के बाद भी 50 प्रतिशत शुल्क हमारे निर्यात के कम-से-कम आधे हिस्से को प्रभावित करेगा। खासकर कपड़ा, रत्न एवं आभूषण, और चमड़ा जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में इसका असर होगा।’’

सुब्बाराव ने यह भी बताया कि औषधि और इलेक्ट्रॉनिक्स पर मौजूदा छूट स्थायी नहीं हैं। जारी समीक्षा भविष्य में उन्हें शुल्क के दायरे में ला सकती है।

उन्होंने कहा, ‘‘ज्यादा चिंता की बात यह है कि भारत अब एशिया में सबसे ज्यादा शुल्क का सामना कर रहा है। भारत पर लगा शुल्क बांग्लादेश (20 प्रतिशत), वियतनाम (20 प्रतिशत) और इंडोनेशिया (19 प्रतिशत) से कहीं ज्यादा है। यह एक महत्वपूर्ण समय में हमारी चीन प्लस-1 आकांक्षा को कमजोर करता है।’’

सुब्बाराव ने कहा कि फरवरी की बैठक में नरेन्द्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को तिगुना से भी ज्यादा बढ़ाकर 500 अरब डॉलर करने का संयुक्त वादा अब स्पष्ट रूप से अवास्तविक लगता है।

‘‘हमारे निर्यात पर संभावित प्रभाव का आकलन करते समय, हमें इस संभावना पर भी विचार करना होगा कि चीन अपने अमेरिकी बाजार में हुए नुकसान की भरपाई के लिए विश्व बाजारों में डंपिंग कर सकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक इन बाजारों में हमारी प्रतिस्पर्धा का सवाल है, अमेरिका के बाहर के देशों को होने वाले हमारे निर्यात पर भी असर पड़ेगा।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत के लिए कृषि और डेयरी क्षेत्र में अमेरिका को थोड़ी सी भी रियायत देना संभव है, सुब्बाराव ने कहा कि कृषि और डेयरी भारत में राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं। ये क्षेत्र लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं और देश की खाद्य सुरक्षा से गहराई से जुड़े हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘अमेरिकी आयात के लिए पूरी तरह से खुलापन न तो संभव है और न ही वांछनीय। हालांकि, कुछ संतुलित लचीलापन बातचीत में गतिरोध को दूर करने में मदद कर सकता है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या रूसी कच्चे तेल आयात में कटौती संभव है, उन्होंने कहा कि अगर भारत अचानक रूस से खाड़ी देशों की ओर रुख करता है, तो वैश्विक तेल कीमतें बढ़ जाएंगी क्योंकि न तो अमेरिका और न ही ओपेक (तेल निर्यातक देशों के संगठन) आपूर्ति में तेजी ला सकते हैं।

सुब्बाराव ने कहा, ‘‘इसका असर वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, भारत के चालू खाते पर असर, रुपये की विनिमय दर और महंगाई के दबाव को बढ़ाने के रूप में होगा। सही मायने में कहा जाए तो इससे दूर जाना कोई आसान समाधान नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि व्यावहारिक तरीका धीरे-धीरे विविधीकरण करना है। समय के साथ पश्चिम एशिया और अफ्रीकी तेल को जोड़ना और साथ ही राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा की रक्षा के लिए लचीलापन बनाए रखना है।

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पर गतिरोध और आगे भारत की बातचीत की रणनीति क्या होनी चाहिए, इस पर सुब्बाराव ने कहा कि अगर दोनों पक्ष घाटे के बजाय तुलनात्मक लाभ पर ध्यान केंद्रित करें तो एक संतुलित समझौता संभव है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी रणनीति व्यावहारिक होनी चाहिए। भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से बचें, दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद क्षेत्रों की पहचान करें और श्रम-प्रधान उद्योगों में तरजीही पहुंच के लिए प्रयास करें। साथ ही जहां संभव हो, चुनिंदा रियायतें भी प्रदान करें।’’

भाषा रमण अजय

अजय

Check out our other content

Check out other tags:

Most Popular Articles