नयी दिल्ली, 19 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई शुरू की, जिसमें संवैधानिक प्रश्न उठाए गए थे कि क्या न्यायालय राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केरल और तमिलनाडु की राज्य सरकारों को राष्ट्रपति के संदर्भ की स्वीकार्यता को लेकर सवाल उठाने की अनुमति दी।
प्रधान न्यायाधीश गवई ने सुनवाई शुरू करते हुए कहा, ‘‘हम आधे घंटे तक प्रारंभिक आपत्तियों पर सुनवाई करेंगे। इसके बाद हम अटॉर्नी जनरल की दलीलें सुनना शुरू करेंगे।’’
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि प्रारंभिक आपत्तियों पर सुनवाई के बाद, न्यायालय राष्ट्रपति के संदर्भ पर ही दलीलें सुनेगा, जिसकी शुरुआत अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की दलीलों से होगी।
केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल ने राष्ट्रपति के संदर्भ का विरोध किया और कहा कि यह मामला पहले ही कई निर्णयों द्वारा स्पष्ट किया जा चुका है।
उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की शक्तियों की उच्चतम न्यायालय द्वारा बार-बार व्याख्या की गई है और तमिलनाडु (राज्य बनाम राज्यपाल) मामले में यह पहली बार है कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर स्वीकृति के लिए कोई समय सीमा तय की गई है।
इस बीच, केंद्र ने अपने लिखित दलील में कहा है कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए निश्चित समय-सीमा निर्धारित करना, सरकार के एक अंग द्वारा ऐसा अधिकार अपने हाथ में लेना होगा जो संविधान ने उसे प्रदान नहीं किया है और इससे ‘‘संवैधानिक अव्यवस्था’’ पैदा हो सकती है।
सरकार ने अपनी दलील में कहा है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा निश्चित समय-सीमा लागू करने से संविधान द्वारा स्थापित सूक्ष्म संतुलन भंग हो जाएगा और यह कानून के शासन को नकारने जैसा होगा।
शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई के लिए समय-सारिणी तय की थी और 19 अगस्त से सुनवाई शुरू करने का प्रस्ताव रखा था।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि राष्ट्रपति के संदर्भ का समर्थन करने वाले केंद्र और राज्यों की सुनवाई 19, 20, 21 और 26 अगस्त को होगी, जबकि इसका विरोध करने वालों की सुनवाई 28 अगस्त और दो, तीन और नौ सितंबर को होगी।
पीठ ने कहा कि अगर इसके प्रत्युत्तर में कोई दलीलें होंगी, तो उन पर 10 सितंबर को सुनवाई होगी।
शीर्ष अदालत ने 22 जुलाई को कहा था कि राष्ट्रपति के संदर्भ में उठाए गए मुद्दे ‘‘पूरे देश’’ को प्रभावित करेंगे।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई में अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए शीर्ष अदालत से यह जानने का प्रयास किया था कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समय-सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं।
राष्ट्रपति का यह निर्णय तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में राज्यपाल की शक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय के आठ अप्रैल के फैसले के आलोक में आया है।
इस फैसले में पहली बार यह प्रावधान किया गया था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए।
पांच पृष्ठों के संदर्भ में राष्ट्रपति मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय से 14 प्रश्न पूछे और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने में अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर उसकी राय जानने की कोशिश की।
फैसले में सभी राज्यपालों के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने की समय-सीमा तय की गई है और यह व्यवस्था दी गई है कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल किसी भी विधेयक पर अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल नहीं करेंगे, बल्कि उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह का पालन करना अनिवार्य है।
फैसले के अनुसार, अगर राष्ट्रपति राज्यपाल द्वारा विचारार्थ भेजे गए किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति नहीं देते हैं, तो राज्य सरकारें सीधे उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकती हैं।
भाषा सुरभि माधव
माधव