राजस्थान में गुर्जर किसी तरह शांत हुए तो अब भरतपुर और धौलपुर के जाटों ने सड़क पर उतरने की तैयारी कर ली है. भरतपुर और धौलपुर को छोड़कर पूरे राजस्थान के जाटों को आरक्षण मिला हुआ है, ऐसे में ये दो जिले भी आरक्षण मांग रहे हैं. इनका केंद्र भी भरतपुर ही है, गुर्जर आरक्षण आंदोलन की तरह. हालांकि गुर्जर पटरी से 150 मीटर दूर बैठे थे, लेकिन जाट नदबई से गुजरने वाले नेशनल हाईवे के रस्ते अपनी मांग को जयपुर पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं.
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के गढ़ से निकलती ये एक और आवाज उन्हें परेशान करेगी. भले ही इस आंदोलन में विजय बैंसला की तरह कोई अपना नहीं हो, लेकिन इस जाट महापंचायत का आह्वान करने वाला भी पूर्व भाजपाई ही है. कभी वसुंधरा राजे के करीबी माने जाने वाले नेमसिंह फौजदार ने साल 2023 का चुनाव आजाद समाज पार्टी के बैनर पर लड़ा था. नगर विधानसभा सीट पर जहां जवाहर सिंह बेढम को 1531 वोट से जीत मिली, वही नेम सिंह ने 46 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की पूरी कोशिश की.
जाति के मुद्दे पर भजनलाल शर्मा कैसे निपटेंगे?
बरहाल, भजनलाल शर्मा को एक और चुनौती से पार पाना होगा. हालांकि ऐसा नहीं है कि ऐसी चुनौतियां पिछली सरकारों में नहीं थी. जाति की बेहतरीन गणित के साथ राजनीति करने वाली वसुंधरा राजे भी गुर्जर आंदोलन के चलते कुर्सी गंवा बैठी थी. लेकिन, अशोक गहलोत इस मामले में सियासी जादूगर साबित हुए हैं. अशोक गहलोत के तीन कार्यकालों (1998-2003, 2008-2013, और 2018-2023) के दौरान राजस्थान में जातिगत आंदोलन, विशेष रूप से गुर्जर और अन्य समुदायों के आरक्षण आंदोलनों, ने महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव डाला. लेकिन गहलोत इस चुनौती से उबर गए.
राजस्थान में पिछले ढाई दशक में बीजेपी शासन (1993-1998, 2003-2008, 2013-2018, 2023-वर्तमान) के दौरान विभिन्न जातियों के आंदोलन और विरोध प्रदर्शन हुए. साल 2006 में हिंडौन (बूंदी) में पहला प्रदर्शन हुआ, जब सड़क और रेल मार्ग बाधित हुआ. साल 2007 में पीपलखेड़ा में हिंसा हुई. चौपड़ा समिति ने ST आरक्षण की सिफारिश की, लेकिन संवैधानिक सीमाओं के कारण लागू नहीं हुआ. फिर साल 2008 में भरतपुर में हिंसक प्रदर्शन हुआ. जब वसुन्धरा राजे दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं तो 2015 में वसुंधरा राजे सरकार ने 1% MBC आरक्षण दिया, लेकिन यह अपर्याप्त था. हाल ही में एक बार फिर 8 जून को पीलूपुरा (भरतपुर) में ही महापंचायत हुई, जो कि गुर्जर आरक्षण आंदोलन का केंद्र है. 2016, 2020- 21 समेत कई वर्षों में किसान, अग्निवीर जैसे मुद्दों पर शेखावाटी में बीजेपी का विरोध हुआ.
वहीं, जाट आंदोलन ने भी बीजेपी को नुकसान पहुंचाया है. जाटों ने OBC आरक्षण की मांग की और 2020-21 के किसान आंदोलन में बीजेपी की नीतियों (कृषि कानून, अग्निपथ योजना) का विरोध किया. शेखावाटी क्षेत्र (झुंझुनू, चूरू, सीकर, नागौर) में जाटों ने बीजेपी का काफी विरोध किया. साल 2016, 2020-21 समेत कई वर्षों में जाटों ने किसान आंदोलन और अग्निवीर के मुद्दे पर विरोध किया. मामला भले ही केंद्र की नीति का विरोध का रहा, लेकिन शेखावाटी समेत राजस्थान में इस विरोध की पृष्ठभूमि बीजेपी द्वारा जाट नेताओं के प्रतिनिधित्व और असंतोष से भी जुड़ी रही. जैसा कि गहलोत के कार्यकाल में नहीं दिखा. बीजेपी को शेखावाटी क्षेत्र में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में नुकसान भी हुआ. सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम पर फैसले के खिलाफ भी SC/ST आंदोलन (2018) का प्रभाव राजस्थान में काफी दिखा.
जातियों के आंदोलन के दौरान गहलोत की सियासी रणनीति समझिए
गुर्जर आंदोलन 2006-2007 में अधिक तीव्र हुआ, लेकिन इसके बीज गहलोत के पहले कार्यकाल में ही पड़ चुके थे. साल 2002 में गुर्जर समुदाय ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल होने और आरक्षण की मांग को औपचारिक रूप से उठाना शुरू किया. गुर्जर समाज, जो मुख्य रूप से राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा था. गहलोत ने इस दौरान आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए संवाद पर जोर दिया. उन्होंने गुर्जर नेताओं के साथ बातचीत की और उनकी मांगों को समझने के लिए समितियां गठित कीं. लेकिन इसी आंदोलन ने 2006 के बाद वसुंधरा राजे के लिए मुसीबत पैदा करनी शुरू कर दी थी.
गहलोत के दूसरे कार्यकाल में भी गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में समुदाय ने रेल और सड़क मार्ग अवरुद्ध किए. इस दौरान अनुसूचित जनजाति (ST) के तहत आरक्षण की मांग की गई. क्योंकि उन्हें लगता था कि OBC कोटा उनके लिए पर्याप्त लाभकारी नहीं था.
वसुंधरा राजे भी इस मामले में पीछे रही
2008 में, पिछली वसुंधरा राजे सरकार ने गुर्जरों को विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) के तहत 5% आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन यह कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं था. गहलोत सरकार पर इस वादे को लागू करने का दबाव था. गहलोत सरकार ने कर्नल बैंसला और अन्य गुर्जर नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की. हालांकि, 50% आरक्षण की संवैधानिक सीमा के कारण, SBC कोटा लागू करना चुनौतीपूर्ण रहा. उनके तीसरे कार्यकाल में भी गुर्जर आंदोलन फिर से उभरा। कर्नल बैंसला के नेतृत्व में गुर्जरों ने सवाई माधोपुर में रेल पटरियों पर धरना दिया, जयपुर-दिल्ली रेल मार्ग को अवरुद्ध किया. गहलोत सरकार ने 2019 में गुर्जरों सहित पांच समुदायों को 5% SBC आरक्षण देने का विधेयक पारित किया, लेकिन यह फिर से अदालत में अटक गया. गहलोत की खासियत रही कि तीनों ही कार्यकाल के दौरान, हिंसा से बचने और बातचीत को प्राथमिकता दी.
-कुमार