उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद राजस्थान में जाट राजनीति का मुद्दा गरमा गया है. प्रदेश में परसराम मदेरणा, नाथूराम मिर्धा जैसे दिग्गज नेताओं ने राजस्थान की राजनीति में योगदान तो दिया, लेकिन जाटों का अच्छा दबदबा होने के बावजूद कभी इस जाति से कोई भी नेता मुख्यमंत्री नहीं बन पाया. बहरहाल, 1985 के विधानसभा चुनाव के बाद से जाट वर्ग विभिन्न दलों में बंटा हुआ रहा, जिससे जाट नेतृत्व में अक्सर टकराव होता रहा. नाथूराम मिर्धा राजस्थान लोकदल के अध्यक्ष और विधायक दल के नेता रहे, वहीं कल्याणसिंह कालवी जनता पार्टी के अध्यक्ष बने.
चौधरी चरण सिंह के स्वास्थ्य में गिरावट के बाद उनके पुत्र अजीत सिंह फिर राजनीति में उभरे. 1979 में जनता पार्टी के बिखरने के बाद दल-दल की स्थिति और गहराई. इन सबके बीच, एक नारा जो 1990 के दशक में बड़ा प्रचलित हुआ था और यह नारा दिया था दिग्गज जाट नेता देवीलाल चौधरी ने. 1990 के विधानसभा चुनाव के दौरान कहा था कि ‘अ.ज.ग.र. यानी अहीर-जाट-गुजर-राजपूत कांग्रेस को खा जाएगा और हुआ भी ऐसा ही.
कहानी शुरू होती है 1985 के चुनाव से. जब इमरजेंसी में जेल गए नेताओं और उनके द्वारा गठित पार्टियों की स्थिति सुधरती जा रही थी. भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय जनसंघ पूरा क्षेत्र अपने अधीन कर लिया था. लेकिन किसान वर्ग के नाम पर जाट नेतृत्व में टकराव जारी था. नाथूराम मिर्धा राजस्थान लोकदल के अध्यक्ष और विधायक दल के भी नेता थे. जनता पार्टी के अध्यक्ष कल्याणसिंह कालवी थे. चौधरी चरण सिंह का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहने लगा था.
तभी 1990 के चुनाव की तैयारी भी शुरू हो गई थी. जनता दल के नेता चौधरी देवीलाल ने लोकसभा चुनाव के समय एक नारा दिया था अ.ज.ग.र. यानी – अ – से अहीर, ज – से जाट, ग – से गुजर और र – से राजपूत और कहा था कि यही ‘अजगर’ कांग्रेस को खा जाएगा. इसी सोशल इंजीनियरिंग के दम पर चुनाव लड़ा गया और कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी. कांग्रेस के खाते में सीटें आई 50, जबकि बीजेपी 85 और जनता दल 55 सीटें जीतने में कामयाब रहीं.
राजस्थान की कुर्सी बीजेपी के खाते में आई. देवीलाल ने शाहपुरा (जयपुर) की आम सभा में घोषणा कर दी थी कि राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत होंगे और वैसा ही हुआ. किसी ने इस पर विरोध जाहिर नहीं किया और जनता दल- बीजेपी की सरकार बनी.
देवीलाल की राजस्थान में सक्रियता कभी शेखावत को पसंद नहीं थी
इससे पहले, जनता दल की सरकार में बढ़ता तनाव, राम मंदिर निर्माण का मुद्दा और मंडल आयोग की सिफारिशों ने दिल्ली में बैठे सत्ता के साझीदारों को हिलाकर रख दिया था. इधर, राजस्थान में चौधरी देवीलाल की निरंतर बढ़ती सक्रियता और गतिविधियों का प्रारंभ में बीजेपी नेता भैरोसिंह शेखावत ने भी विरोध किया था और उन्होंने कहा कि राजस्थान को हरियाणा का उपनिवेश नहीं बनाने देंगे.
फिर दोनों एक रथ पर सवार होकर निकल पड़े…
लेकिन जब राजस्थान में गठबंधन की सरकार बनी तो देवीलाल और शेखावत एक ही रथ में सवार होकर शेखावाटी, चूरू, बीकानेर, गंगानगर समेत कई जिलों का दौरा किया. देवीलाल के पोते अजयसिंह दातारामगढ़ से विधायक चुने गए थे, जो भैरोसिंह शेखावत का गृह जिला था.
जब भाजपा ने वी.पी. सिंह सरकार का समर्थन वापस लिया, तब इसकी प्रतिक्रिया में राजस्थान में शेखावत की सरकार गिराने के लिए जनता दल के सदस्यों को खुला खेलने को कहा गया. इस पर राजस्थान जनता दल में दो धड़े हो गये. मंत्रिमंडल के 11 सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया, लेकिन जनता दल (दिग्विजय सिंह) के धड़े ने शेखावत का साथ दिया. इससे सरकार तो गिरने से बच गई, लेकिन जनता दल में बिखराव हो गया. इसके बाद डॉ. चन्द्रभान वाले जनता दल के भी 3 टुकड़े हो गए. इसी बीच, नाथूराम मिर्धा का एक धड़ा कांग्रेस में फिर से वापसी कर गया.